संत रविदास की सीख: कर्म करना हमारा धर्म है तो उसका फल पाना सौभाग्य

संत रविदास ने हमेशा जातिवाद को त्यागकर प्रेम से रहने की शिक्षा दी। उन्होंने अच्छे कर्मों और गुणों को जरूरी माना है। लोगों का भला करना और साफ मन से भगवान में आस्था रखना ही उनका स्वभाव था। संत रविदास को कभी भी धन का मोह नहीं रहा। उनके बताए दोहों को समझकर अपनाने से जीवन में सकारात्मकता बढ़ेगी और सफलता भी मिल सकती है।


करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस


कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास


अर्थ - हमें हमेशा कर्म में लगे रहना चाहिए और कभी भी कर्म के बदले मिलने वाले फल की आशा नही छोड़नी चाहिए क्‍योंकि कर्म करना हमारा धर्म है तो फल पाना हमारा सौभाग्य है।


रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच,


नर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच


अर्थ - सिर्फ जन्म लेने से कोई नीच नही बन जाता है, इन्सान के कर्म ही उसे नीच बनाते हैं।


ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,


पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीन।।


अर्थ - इस दोहे में रविदास जी कहते हैं कि किसी को सिर्फ इसलिए नहीं पूजना चाहिए क्योंकि वह किसी पूजनीय पद पर है। यदि व्यक्ति में उस पद के योग्य गुण नहीं हैं तो उसे नहीं पूजना चाहिए। इसकी जगह अगर कोई ऐसा व्यक्ति है, जो किसी ऊंचे पद पर तो नहीं है लेकिन बहुत गुणवान है तो उसका पूजन अवश्य करना चाहिए।


मन ही पूजा मन ही धूप,


मन ही सेऊं सहज स्वरूप।।


अर्थ - इस पंक्ति में रविदासजी कहते हैं कि निर्मल मन में ही भगवान वास करते हैं। अगर आपके मन में किसी के प्रति बैर भाव नहीं है, कोई लालच या द्वेष नहीं है तो आपका मन ही भगवान का मंदिर, दीपक और धूप है। ऐसे पवित्र विचारों वाले मन में प्रभु सदैव निवास करते हैं।


रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच


नकर कूं नीच करि डारी है, ओछे करम की कीच


अर्थ - इस दोहे में रविदासजी कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति किसी जाति में जन्म के कारण नीचा या छोटा नहीं होता है। किसी व्यक्ति को निम्न उसके कर्म बनाते हैं। इसलिए हमें सदैव अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए। हमारे कर्म सदैव ऊंचें होने चाहिए।Image result for sant ravidas